जज़्बात
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जिंदगी मेरे घर आना
खुशी की एक थाप लगाना
कुछ अधूरा सा लगता है
ख्वाब भी जैसे सच सा लगता है
उलझनों का ताना बाना
जिंदगी मेरे घर आना
गुजरे हुए अतीत में
भविष्य के स्पंदन की आशा
सामने बैठा वर्तमान देख रहा है तमाशा
वक्त है सबसे बड़ा
जिसके आगे ना कोई हुआ है खड़ा
हर लम्हों को खुलकर जीना
जिंदगी मेरे घर आना
कुछ दूर से कुछ करीब
अब तक जो मिला ,वो नसीब से
हर्ष में,विषाद में
कभी अपनों की फरियाद में
बहुत ज्यादा की नहीं है दरकार
बस मेरे सपने ले लें सच्चाई का आकार
हर पल ढूंढती हूं तुझे जिंदगी
काश मेरा अंतस समझ पाता तेरी मौजूदगी
खुशी की एक थाप लगाना
जिंदगी मेरे घर आना
तू भी कितनी अजीब है
क्या बनाई हमारी नसीब है
जो सोची वो कभी मिलती नहीं
जो मिलती है वो कभी सोचती नहीं
जो मिली वो दिल को भाया नहीं
जो बिसूर गया उसकी कमी खलती है
और जो मिला,वो हमारे संभलती नहीं
फिर भी इन उलझनों में
खुशी की एक थाप लगाना
जिंदगी मेरे घर आना।
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