खुद की तलाश

अगर मगर और काश में हूं,मैं खुद अपनी तलाश में हूंदिन के उजालों को सहने की नही है ताकत,इसलिये मैं बुझते हुए दीये की प्रकाश में हूं खेलती है दुखों के साथ,ज़िन्दगी बड़ी शरारती है,सताती है, तड़पाती हैै, गिराती और उठाती है,नासमझ सा हो गया हूं मैं,अब ना किसी की अह्सास में हूं,अगर मगर और काश में ,मैं खुद अपनी […]

काला टीका🌑🌑

 ऑफिस के लिए जब भी निकलती,मां एक काला टीका हमेशा कान के पीछे लगा दिया करती ।लाख मना करने के बावजूद ये उनका रोज का काम था।कहती कि बुरी बला से तुम्हारी रक्षा हो।उनका प्रेम देखकर मैं भी चुप हो जाया करती थी।बाबूजी पीछे अख़बार पढ़ते हुए मां की बातों पर चुटकी लिया करते। खैर, इसी तरह से हंसते- खेलते […]

आईना और चेहरा

एक रोज सुबह जब मैं उठा,मेरा घमंड जैसे पल भर में टूटा,जब देखा मैने आईना,मेरी नजर फिर आईने की नजर से टकराई ना, कल रात जिस चेहरे को देखा था मैं,जिस चेहरे पर कभी घमंड करता था मैं,वो तो मुझे आईना में दिखा ही नही,बदला सा अन्जाना सा जैसे कभी मेरा था ही नहीं, अजनबी चेहरे को देखकर बिजली सी […]

छोटी – सी भूमिका

मेरी जिन्दगी में थोड़ी- सी ही सही,मेरी भी है छोटी-सी भूमिका,फिर ऐसा क्यों लगता है सबको,कि मैं नहीं हूं किसी काम का, मैं सांस भी लेता हूँ और मेरा दिल धड़कता भी है,मैं उदास हो जाता हूं लेकिन मेरा चेहरा हँसता भी है,ये सच है कि आज मैं बेकार हूँ,पर ऐसा नहीं कि मैं लाचार हूँ, एक दिन मैं फिर […]