खिड़की की ओट में थी खड़ी तभी पीछे नज़र पड़ी थी वो मेरी सहचरी जो संग थी खड़ी हां! तू है मेरी परछाई जो हमेशा मेरे पास नज़र आई कुछ सवालें मन में उठ रही हैं क्यूं अपेक्षाओं की कतारें औरतों के ही जीवन में लगी है अपने वजूद को भूल हम सामाजिक ताम झाम को समेटने में […]
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